Thursday, October 5
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रामकृष्ण मिशन के संस्थापक महापुरुष स्वामी विवकानंद की जीवनी

सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की तरफ से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाला महापुरुष स्वामी विवकानंद ( swami vivekananda ) थे | ये रामकृष्ण परमहंस के कुशल शिष्य थे | उन्होंने ( swami vivekananda ) जब रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी तो उनके भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” के साथ हुअा था जो लोगो के दिल को छू गया | यह मिशन आज भी अपना काम कर रहा है |

 

बचपन:-
स्वामी विवेकानन्द ( swami vivekananda ) का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कलकत्ता में था। बचपन मे उन्हें नरेन्द्रनाथ दत्त के नाम से पुकारा जाता था | उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे।उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो धार्मिक विचारों की महिला थीं|
बचपन मे उनके अंदर चंचलता कूट कूट कर भरी थी अपने साथी मित्रो के साथ साथ कभी कभी अपने अध्यापको से भी शरारत करते थे |उनका परिवार धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण से घिरा रहता था जिसका प्रभाव नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार डालते रहता था। इसी वजह से नरेन्द्र के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी|
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शिक्षा:-
सन् 1871 में नरेंद्र ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट से अपनी स्कूली शिक्षा प्रारंभ की | वर्ष 1879 में एकमात्र उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किया |
नरेंद्र को बचपन से ही इतिहास, दर्शन,धर्म, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य, भगवद् गीता, वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी।
सन् 1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की | और वर्ष 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली थी।
महासभा संस्था के प्रिंसिपल “विलियम हेस्टी” ने लिखा, “नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला का एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं।” |

 

विवाह:-
नरेन्द्र नाथ ने विवाह नहीं किया | अपना सारा जीवन भारतीय संस्कृती को विश्वस्तर पर पहचान दिलाने मे समर्पित कर दिया।

 

गुरु :-
बचपन से ही नरेंद्र के मऩ मे परमात्मा को पाने की ललक थी और अपने इसी उद्देश्य की पूर्ती करने के लिए ब्रह्मसमाज में गये परंतु वहाँ उनका मऩ शान्त न हुआ। उसके बाद 1881 मे रामकृष्ण परमहंस की तारीफ सुनकर नरेन्द्र उनसे तर्क के उद्देश्य से उनके पास गये, जब नरेंद्र ने रामकृष्ण के विचारों को सुना तो वह उनके विचारों से प्रभावित हो गए और उन्हे अपना गुरू मान लिया। अपने गुरु की कृपा से उन्हे आत्म साक्षात्कार हुआ। रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्यों में से नरेन्द्र श्रेस्ठ थे।
25 वर्ष की अायु में नरेन्द्र ने अपना परिवार और घर छोड़कर सन्यास ले लिया और विश्व भ्रमण के लिए निकल पड़े |उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की।
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विश्व भ्रमण:-
वर्ष 1893 में अमरीका के शिकागो शहर में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। किन्तु उस समय युरोप में भारतीयों को हीन दृष्टी से देखा जाता था । एक प्रोफेसर की मदद से स्वामी जी को बोलने के लिए थोड़ा समय का अवसर मिला।
स्वामी जी के मुख से यह शब्द-” मेरे अमरीकी बहिनों एवं भाईयों” सुनकर श्रोताओं ने करतल ध्वनी से उनका स्वागत किया । उनका यह सम्बोधन हिंदू धर्म की श्रेष्ठता और महानता को प्रदर्शित किया | श्रोतागण उनको मंत्र मुग्ध होकर सुनते रहे, निर्धारित समय कब बीत गया पता ही न चला, और निवेदन करने पर 20 मिनट से अधिक बोले। इस तरह उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया। वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया।
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योगदान :-
अमेरिका से लौटकर विवेकानन्द ( swami vivekananda ) ने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था-“नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।” और जनता ने भी स्वामी जी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। इस प्रकार वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने।
उन्होंने अपने कथन मे कहा -“‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।
1 मई,1897 को स्वामी विवेकानंद द्वारा रामकृष्ण मिशन की स्थापना की गयी । रामकृष्ण मिशन का उद्देश्य दूसरों की सेवा और परोपकार करना है जो कि हिन्दुत्व में प्रतिष्ठित एक महत्वपूर्ण सिध्दान्त है।
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मृत्यु :-
जीवन के अन्तिम दिन मे जाते जाते उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-“एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।”
4 जुलाई 1902  को उन्होंने ( swami vivekananda ) अपनी दिनचर्या के अनुसार ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही समाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का 16 वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था| उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया गया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की गयी ।
उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु  16 अगस्त 1886 को हुअा था |

विवेकानन्द के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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Quotes:-

  • जैसा आप सोचते हैं , वैसा आप बन जायेंगे।
  • जल्दी गुस्सा करना जल्द ही आपको मूर्ख साबित कर देगा।
  • गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो।
  • इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ रहिये।
  • शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।
  • कोई व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं।
  • कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है।
  • अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
  • उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी  सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
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